
कविता, करुणा और क्रांति का संगम बना आसनसोल का कवि सम्मेलन – दैनिक जागरण की पहल
आसनसोल, 12 जून। दैनिक जागरण द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन बृहस्पतिवार की शाम आसनसोल के साहित्य प्रेमियों के लिए एक अविस्मरणीय सांस्कृतिक अनुभव बन गया। सम्मेलन में जहां सामाजिक सरोकारों की बुलंद आवाज़ें गूंजीं, वहीं मंच पर कविता, व्यंग्य, गीत और शायरी के विविध रंग बिखरे।

कार्यक्रम का संचालन चर्चित कवि विनीत चौहान ने किया। उन्होंने अपनी ओजपूर्ण शैली में पश्चिम बंगाल की वर्तमान कानून व्यवस्था पर कटाक्ष करते हुए एक सशक्त कविता प्रस्तुत की। उनकी रचना में यह पंक्तियाँ विशेष गूंजती रहीं –
“न्याय की चादर ओढ़े जब अन्याय मुस्कराए,
तो समझ लेना वक़्त बदलने को तैयार है।”
वहीं जनप्रिय कवि नीलोत्पल मृणाल ने ग्रामीण जीवन के चित्र खींचते हुए कविता “एक नौकरी के चक्कर में सिकंदर हार गया” और “कहाँ गया सलोना रे” के माध्यम से युवा वर्ग की जद्दोजहद को स्वर दिया। उन्होंने प्रिंट मीडिया की प्रासंगिकता को लेकर कहा:
“सादे काग़ज़ पर काली स्याही से लिखकर
हर सुबह उम्मीदों की रोशनी बिखेरता है एक अख़बार।
अखबार आज जगत की आख़िरी उम्मीद है –
यह कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकता।”
इस मौके पर कवि मृणाल की प्रस्तुति ने गहरी भावनात्मक छाप छोड़ी। उनकी कविता जीवन और स्मृतियों की परतें खोलती नजर आई:
“कहाँ गया है मेरा दिन वो सलोना रे,
जिसकी हथेली में बसी थी माटी की सोंधी खुशबू,
हाथ में था मेरी माटी का खिलौना,
टूट गया चुपचाप, पर मैं रो न सका…”
पूनम वर्मा ने अपने मधुर गीत “थोड़ा हम बदल जाएं, थोड़ा तुम बदल जाओ” से माहौल को संवेदनशील और प्रेरणादायक बना दिया। उनकी प्रस्तुति में रिश्तों की आत्मा झलकती रही।
हास्य-व्यंग्य के कवि विकास बौखल ने अपनी चुटीली कविताओं और हाज़िरजवाबी से श्रोताओं को हँसी के ठहाकों में डुबो दिया, जबकि शायर अकबर ताज ने अपनी संजीदा शायरी से मन को भीतर तक छू लिया।
निष्कर्षतः, यह कवि सम्मेलन केवल एक साहित्यिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह समाज के समसामयिक सवालों पर विचार का मंच बना। दैनिक जागरण की यह पहल न केवल सराहनीय है, बल्कि साहित्य को जनचेतना से जोड़ने का एक सफल प्रयास भी सिद्ध हुई।