
रानीगंज की पारंपरिक रथ यात्रा आज से शुरू, हजारों श्रद्धालुओं ने लिया हिस्सा विमल देव गुप्ता
रानीगंज। रानीगंज की ऐतिहासिक और पारंपरिक रथ यात्रा आज विधिवत पूजा-अर्चना के बाद शुरू हो गई। राजघराने की ओर से परंपरागत रूप से की गई पूजा के पश्चात विशाल पीतल के रथ को राज दरबार से खींचकर निकाला गया। एक सप्ताह तक चलने वाली इस रथ यात्रा में इस वर्ष भी हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

बताया जाता है कि वर्ष 1873 में रानीगंज के राजपरिवार ने इस रथ यात्रा की शुरुआत की थी। इस अंचल में रथ मेला सबसे पहले यहीं से प्रारंभ हुआ था, जिसकी आधारशिला राजघराने की हर सुंदरी देवी ने रखी थी। परंपरा अनुसार मेला हर वर्ष लगता रहा, लेकिन 1923 में लकड़ी के रथ में आग लग जाने के बाद इसे बंद कर दिया गया था। इसके बाद जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर विधिवत पूजा-अर्चना कर राजपरिवार ने पीतल का नया रथ बनवाया।
यह रथ अपने विशाल आकार और शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है। इसमें रामायण और महाभारत की विभिन्न आकृतियाँ उकेरी गई हैं, तथा भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के साथ राजपरिवार के कुलदेवता को भी रथ पर विराजमान किया जाता है।
रथ यात्रा के साथ लगने वाले मेले में पहले स्थानीय ग्रामीण अपने कृषि संबंधी सामानों की खरीद-बिक्री करते थे। अब इसमें आधुनिक वस्तुओं के साथ-साथ मनोरंजन और खानपान के अनेक स्टॉल भी लगते हैं। इस वर्ष मेले में करीब 300 स्टॉल लगाए गए हैं। परंपरा के अनुसार, आज के दिन जलेबी का विशेष महत्व होता है, इसी को ध्यान में रखते हुए बिहार और उत्तर प्रदेश से आई हुई जलेबी की दुकानों ने भी मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
हर वर्ष की तरह इस बार भी रथ यात्रा को लेकर रानीगंज के लोगों में खासा उत्साह देखने को मिला। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ इस ऐतिहासिक रथ और धार्मिक आयोजन की साक्षी बनी। इस वर्ष भी राजघराने की ओर से अनुराधा मालिया एवं विट्ठल मालिया ने प्रथम पूजा-अर्चना की। उन्होंने कहा कि यह रथ यात्रा पश्चिम बंगाल में अपनी तरह की इकलौती है, जहाँ भगवान जगन्नाथ का पीतल का रथ मौजूद है।
राजघराने का मानना है कि जो श्रद्धालु पुरी की रथ यात्रा में शामिल नहीं हो पाते, वे रानीगंज आकर भगवान जगन्नाथ के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और उन्हें भी वही पुण्य प्राप्त होता है।