अभूतपूर्व वर्षा

23–24 सितंबर की रात कोलकाता में 24 घंटे में लगभग 251 मिमी बारिश हुई। यह 1986 के बाद की सबसे भारी वर्षा थी। तेज़ और लगातार बरसात ने पूरे महानगर को जलमग्न कर दिया।
जान-माल का नुकसान

भारी जलजमाव और करंट लगने की घटनाओं में कम से कम 10 से अधिक लोगों की मौत हुई। कई क्षेत्रों में बिजली काटनी पड़ी, ताकि और दुर्घटनाएँ न हों। रेल, मेट्रो और हवाई सेवाएँ प्रभावित रहीं।
जल निकासी तंत्र की नाकामी
पुराना और जर्जर ड्रेनेज नेटवर्क अचानक आई बारिश का बोझ नहीं झेल सका। कई नालियाँ कचरे और प्लास्टिक से अवरुद्ध थीं। होगली नदी के ज्वार के समय पानी वापस लौट आया, जिससे जलनिकासी पूरी तरह ठप हो गई।
सरकार पर सवाल
लोगों का आरोप है कि नालियों की समय पर सफाई नहीं हुई। मानसून से पहले कोई ठोस तैयारी न होने से हालात बिगड़े। मुख्यमंत्री ने बिजली कंपनी CESC को दोषी ठहराया, जबकि विपक्ष ने राज्य सरकार पर “निकम्मापन” का आरोप लगाया।
विशेषज्ञों की राय
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि बंगाल की खाड़ी में बने निचले दबाव ने अभूतपूर्व नमी खींची, जिससे शहर पर अचानक बारिश का दबाव पड़ा। यह जलवायु परिवर्तन के बढ़ते असर की भी चेतावनी है।
प्लास्टिक कचरे का संकट
ड्रेनेज अवरुद्ध होने की बड़ी वजह शहर की नालियों में जमा प्लास्टिक और ठोस कचरा रहा। प्रशासन की सफाई व्यवस्था की कमजोरी फिर उजागर हो गई।
भविष्य की राह
शहर को बचाने के लिए ड्रेनेज नेटवर्क का आधुनिकीकरण, नालों की नियमित सफाई, पंपिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ाना और प्लास्टिक पर कड़ी रोक ज़रूरी है। राज्य सरकार ने ₹2,100 करोड़ का ड्रेनेज सुधार प्रोजेक्ट घोषित किया है, परंतु जनता को अब नतीजों का इंतज़ार है।
निष्कर्ष
कोलकाता की यह बारिश केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही का भी सबक है। यदि समय रहते ढाँचागत सुधार नहीं किए गए तो आने वाले वर्षों में हालात और भी गंभीर हो सकते हैं।