कोयला उद्योग के लिए देशभर में विख्यात रानीगंज अब शिक्षा और प्रतिभा के क्षेत्र में भी नई पहचान बना रहा है। हाल ही में घोषित चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) परीक्षा परिणाम में रानीगंज अंचल के व्यवसायिक परिवारों के होनहार पुत्र-पुत्रियों ने शानदार सफलता हासिल कर शहर का मान बढ़ाया है।
सानिया बाजोरिया, अंजली गुप्ता, युक्ता लोहारूवाला, महिमा बुचासिया, नीतू कुमारी, जया मिश्रा, उत्कर्ष केडिया, सत्यम भुवालका, बलदेव अग्रवाल, विक्रांत सिंह और अमन मिश्रा जैसे नाम इस बार सफलता की सूची में शामिल हैं। इन सभी ने अपने परिश्रम, समर्पण और लगन से यह सिद्ध किया कि रानीगंज न सिर्फ उद्योग नगरी है, बल्कि ज्ञान की भी भूमि है।
रानीगंज अब “चार्टर्ड अकाउंटेंट्स का हब” बनकर उभर रहा है। यह बात यूं ही नहीं कही जा रही, क्योंकि अब तक इस छोटे शहर ने देश को 500 से अधिक सीए समर्पित किए हैं। यहां के छात्र जिस प्रतिबद्धता और अनुशासन से पढ़ाई में जुटते हैं, वह बड़े-बड़े महानगरों को भी पीछे छोड़ देता है।
रानीगंज के प्रतिष्ठित सीए ललित अग्रवाल का मानना है कि यहां के विद्यार्थियों में एक सकारात्मक प्रतिस्पर्धा का वातावरण तैयार हो चुका है। पिछले दो दशकों में छात्रों में गजब की जागरूकता आई है, और यही उनकी सफलता की नींव है।
रानीगंज चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष रोहित खेतान ने इस विषय में अपने विचार साझा करते हुए कहा कि कभी कोलकाता के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी व्यवसायिक मंडी रानीगंज थी। लेकिन आज जब पारंपरिक उद्योग-धंधे धीरे-धीरे सिमटते जा रहे हैं, तो अगली पीढ़ी के सामने स्थायी व्यवसायिक विकल्प की तलाश शिक्षा के जरिए होने लगी है। यही कारण है कि अब इन घरों के बच्चे व्यवसाय के बजाय सीए, सीएस, और अन्य प्रोफेशनल कोर्स की ओर रुख कर रहे हैं।
मारवाड़ी मित्र परिषद के वरिष्ठ सदस्य अनूप सराफ बताते हैं कि रानीगंज में मेधावी छात्रों को प्रोत्साहित करने की परंपरा की नींव सबसे पहले ‘सुरक्षा’ नामक संस्था ने रखी थी। उन्होंने ही सबसे पहले सीए जैसे परीक्षाओं में उत्तीर्ण विद्यार्थियों को फोटो सहित सम्मानित करने की शुरुआत की थी। आज उसी प्रेरणा से शहर की अनेक संस्थाएं इस दिशा में आगे आई हैं और हर वर्ष इन छात्रों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित कर रही हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव यह हुआ है कि छात्रों में आत्मविश्वास और प्रतियोगी भावना दोनों मजबूत हुई है।
रानीगंज के इन मेधावी छात्रों की सफलता सिर्फ उनके परिवार या शहर की नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा है। कठिन परिश्रम, सीमित संसाधनों के बीच बुलंद हौसले और मजबूत लक्ष्य का यह उदाहरण देश के हर कोने में बैठे विद्यार्थियों को यह संदेश देता है कि यदि संकल्प हो तो कोई भी कस्बा शिक्षा की राजधानी बन सकता है।